कुछ पीले पन्ने
I was sitting idle in my room, and looking at the photos from the past and that stark change became visible.. It has always been there but sometimes it takes eternity to recognize the obvious things.And then I decided to write a poem, just to say A BIG THANKS ( i know it can not suffice the sacrifices made by them) to my parents on behalf of me and my sister for such a beautiful journey so far.....
आज रात बैठे
जब आँख डबडबा आयी तो
तन्हाई ने पूछा
क्या हुआ मेरे भाई ?
मैं हँसा और कहा
कुछ बातें पुरानी
दबी थी जो दिल में
आज याद आयी...
इक खाली कमरा
धूल भरा आँगन
इक टूटी खाट
और उसमें भी ख़ुशी थी समाई..
थाम कर वो मोटी ऊँगली
चला करता था दौडते दौडते
पकोड़े जलेबी का देते थे साथ
चाय की सुगंध चारों और थी रमाई ...
दर्द था उसकी आँखों में
जब मार रही थी वो मुझको
जब पडोसी के बच्चे से
मैं कर आया लडाई.....
सुबह से शाम तक
दौडते थे(हैं) वो हमारे लिए
सोचता हूँ क्या कभी
कर सकूँगा भरपाई ??
मांगता हूँ बस यही
कुछ अच्छा करें हम
जिससे चहरे पे उनके
बस ख़ुशी रहे छाई .....
Comments
i hope u undaestand ki mai comment dene se apne aap ko nahi rok payee,
u can recomment also
bye
tc
Thanks for comment :)