About goals and roads leading to them ..
मंजिलों के पीछे भटकता रहा मैं पर जो बीतता गया मुझमे वो ही जान न पाया मैं घाव गहरे थे तो कांटे याद रह गए मुझको गुजरी महकती राहे उनकी खुशबू साथ ना ल पाया मैं मंजिल अभी भी दूर है पर अन्धेरा घना हो चला है बस यूँही सोचता हूँ कभी क्यों उजाले न साथ ला पाया मैं चार सुर्ख पत्ते कुछ खिलखिलाते चेहरे कुछ चहकती यादें दिल में सहेजी होती तो बात थी अब तो लगता है बस कुछ टिमटिमाते तारों के पीछे ना जाने कितने सूरज गँवा आया मैं....