मेरी राष्ट्भाषा हिंदी ...
आज जब अनायास मन मे हिन्दी में लिखने की इच्छा हुई तो ऐसा लगा जैसे लेखिनी शब्दों के मोड़ ही लेना भूल गयी हो , कम्बख़्त, कई युगों से इसकी जरूरत ही नहीं पड़ी! यूँही बैठे-बैठे, जब चूहा-दौड़ मैं तल्लीन मष्तिष्क साँस लेने के लिए कुछ देर रुका तो सहसा इस कुंठित मन में एक प्रश्न उठ खड़ा हुआ ॥ “ आख़िरी बार मैने हिन्दी में कब लिखा?” इस प्रश्न को लेकर जब व्यथित मान ने मष्तिष्क के द्वार पर दस्तक लगाई तो झुंझलाए दिमाग़ ने अकड़ते हुए कहा “ तू चाहे राष्ट्र भाषा के नाम पर कितने ही इमोसनल अत्याचार कर ले, पर यह सारा ज़मान ही मेरे वाशिभूत हैं॥ यह युग ही गोरों की भाषा का हैं, हम तो तीसरी दुनिया हैं ॥ आगे बढ़ने के लिए उनका पीछा करने का ही तो मार्ग हमें सीखाया गया हैं .. यहाँ तक की शिक्षण पद्धति भी तो हमें "मेकाले" से उधार लेने पड़ी.. भाषा तो बाद मैं आती हैं ..” “ और हां , तुम्हारे सवाल का जवाब.. अंतिम बार इस भले मानुस ने सात साल पहले बोर्ड परीक्षा में हिन्दी की बिंदी उडाई थी “ इतना सुन कर तो मन और भी व्यथित हो गया, मन की यह हालत देख, दिमाग़ बोला.. “ अरे यह तो फिर भी ठीक हैं .. इसने ...